अश्वत्थं रोचनां गां च पूजयेद् यो नरः सदा । पूजितं च जगत् तेन सदेवासुरमानुषम् ।। अर्थात् यः मनुष्यः अश्वत्थवृक्षस्य गोरोचनद्रव्यस्य गोः च पूजनं / सेवां करोति सः एतेन कर्मणा एव देव-असुर-मनुष्यसहितस्य समस्त संसारस्य पूजां करोति इति । भावार्थ - जो मनुष्य पीपल वृक्ष को लगाकर उसकी सेवा करता है, गोरचनद्रव्य का तिलक करता है, तथा गाय का पलन करते हुए उसकी पूजा/सेवा करता है, वह इन तीन कार्यों से ही समस्त संसार की पूजा कर लेता है। www.daivavimarshanam.in https://t.me/daiva_vamarshanam