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जगत्पूजा

अश्वत्थं रोचनां गां च पूजयेद् यो नरः सदा । पूजितं च जगत् तेन सदेवासुरमानुषम् ।। अर्थात् यः मनुष्यः अश्वत्थवृक्षस्य गोरोचनद्रव्यस्य‌ गोः च पूजनं / सेवां करोति सः एतेन कर्मणा एव  देव-असुर-मनुष्यसहितस्य समस्त संसारस्य पूजां करोति इति ।  भावार्थ - जो मनुष्य पीपल वृक्ष को लगाकर उसकी सेवा करता है, गोरचनद्रव्य का तिलक करता है, तथा गाय का पलन करते हुए उसकी पूजा/सेवा करता है, वह इन तीन कार्यों से ही समस्त संसार की पूजा कर लेता है। www.daivavimarshanam.in https://t.me/daiva_vamarshanam

अक्षय-तृतीया

यः पश्यति तृतीयायां कृष्णं चन्दनचर्च्चितम् । वैशाखस्य सिते पक्षे स यात्यच्युतमन्दिरम् ॥ (स्कन्दपुराणम्) वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि जो अक्षयतृतीया के नाम से प्रसिद्ध है, उस दिन जो व्यक्ति भगवान् कृष्ण का दर्शन पूजन आदि करता है, वह व्यक्ति भगवान् विष्णु के परम धाम को प्राप्त करता है।